अंतरिक्ष की सैर | antriksh ki sair par nibandh |अंतरिक्ष की सैर पर निबंध | अंतरिक्ष की यात्रा पर निबंध
अंतरिक्ष की सैर
antriksh ki sair par nibandh
अंतरिक्ष की सैर पर निबंध
अंतरिक्ष की यात्रा पर निबंध,रोकट में बैठकर चाँद पर छुट्टियाँ बिताने जा रहे थ
अंतरिक्ष की सैर
अंतरिक्ष की सैर
antriksh ki sair par nibandh
अंतरिक्ष की सैर पर निबंध
अंतरिक्ष की यात्रा पर निबंध
अंतरिक्ष की सैर
Question - अंतरिक्ष की सैर विषय पर एक काल्पनिक निबंध,अनुचेद,कथा,कहानी अपने सब्दो मै लिखे ।
antriksh ki sair par nibandh |
हम 19 दिसंबर, 1997 को रोकट में बैठकर चाँद पर छुट्टियाँ बिताने जा रहे थे कि हमें एक ग्रह दिखाई दिया। सब यात्रियों ने विचार किया कि चाँद की बजाय इस नए ग्रह की यात्रा की जाए। यह ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर काट रहा था। एक बहुत बड़ी तश्तरी के समान दिखाई देने वाले इस ग्रह पर हम उतर गए।
वहाँ पर कुछ लोग मिले। उन्होंने हमारा जोर-शोर से स्वागत किया। वे हिंदी से मिलती जुलती भाषा बोल रहे थे। उन्होंने बताया कि इस ग्रह को जूनवेंप कहते हैं। उनके सिर पर ऐंटिना की तरह के दो सींग थे दाँत विशेष रूप से बहुत ही सुंदर थे। हमें वहाँ बहुत से खंभे दिखाई दिए। पूछने पर पता चला कि वे घर हैं।
हर घर में लगभग नौ कमरे हैं। घरों की देखभाल बहुत ही व्यवस्थित ढंग से की गई मालूम होती थी। वहाँ की आबादी हमारी अपेक्षा बहुत कम थी। केवल एक हजार लोग थे। वहाँ एक ही जानवर दिखाई दिया जो देखने में बिल्ली की तरह लगता था, पर वे लोग उसे विंचू कहकर पुकार रहे थे।
वहाँ प्रत्येक घर के बाहर दस पेड़ होने जरूरी थे तथा दस पौधे गमलों में लगे होने
अनिवार्य थे।
वहाँ का मुख्य भोजन 'बरगुम' था जो हमारे यहाँ के 'बगर' की तरह ही था। यो समझिए
पाँच 'बरगर' का एक बड़ा-सा 'बरगर'। मौसम सुहावना, न बहुत गर्मी पड़ती थी, न बहुत सर्दी वहाँ के पेड़ सफ़ेद थे, 'ट्रैफिक लाइट' जैसे आकार के प्रदूषण नाम की चीज़ ही नहीं थी।
बच्चे बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने गाने गाकर हमारा मन बहलाया। वहाँ स्कूल जैसा कुछ नहीं था। घर के बड़े ही बच्चों को शिक्षा देते थे। लोगों में अपनापन देखते ही बनता था। छुट्टियाँ खत्म होने को थीं। अब हमें लौटना था, पर वहाँ से चलने की ज़रा भी इच्छा न थी। एक दिन भारी मन से हमने उन लोगों से विदा ली और पृथ्वी की सैर का निमंत्रण देकर धरती पर लौट आए।
वहाँ प्रत्येक घर के बाहर दस पेड़ होने जरूरी थे तथा दस पौधे गमलों में लगे होने
अनिवार्य थे।
वहाँ का मुख्य भोजन 'बरगुम' था जो हमारे यहाँ के 'बगर' की तरह ही था। यो समझिए
पाँच 'बरगर' का एक बड़ा-सा 'बरगर'। मौसम सुहावना, न बहुत गर्मी पड़ती थी, न बहुत सर्दी वहाँ के पेड़ सफ़ेद थे, 'ट्रैफिक लाइट' जैसे आकार के प्रदूषण नाम की चीज़ ही नहीं थी।
बच्चे बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने गाने गाकर हमारा मन बहलाया। वहाँ स्कूल जैसा कुछ नहीं था। घर के बड़े ही बच्चों को शिक्षा देते थे। लोगों में अपनापन देखते ही बनता था। छुट्टियाँ खत्म होने को थीं। अब हमें लौटना था, पर वहाँ से चलने की ज़रा भी इच्छा न थी। एक दिन भारी मन से हमने उन लोगों से विदा ली और पृथ्वी की सैर का निमंत्रण देकर धरती पर लौट आए।